सामग्री: एक छोटी गोलाकार वस्तु (गेंद या नींबू), एक मजबूत लकड़ी या साइकिल स्पोक, टॉर्च/बल्ब
विधि:
गेंद को मजबूती से लकड़ी पर बांध दें| यह गेंद चन्द्रमा बनेगी|
अपनी बांह आगे कीजिए, उसे उठाकर कंधे की ऊंचाई तक लाइए और गेंद को अपने चारों ओर घुमाइए| (ध्यान रखें कि गेंद को दाहिने हाथ के नियम के अनुसार घुमाना है!) आपको चन्द्रमा का केवल एक ही चेहरा दिखाई देगा| पृथ्वी से चन्द्रमा ऐसा ही दिखता है| इसलिए आपका सिर पृथ्वी होगा|
अब अपने दोस्त को 2 मीटर दूर खड़े होने को कहिए और आपकी ओर टॉर्च चमकाने को कहिए| यह सूर्य की किरणें हैं|
अपनी बांह फिर आगे कीजिए ताकि पृथ्वी और सूर्य के बीच में चन्द्रमा आ जाए| क्या आपको चन्द्रमा के प्रकाशित भाग का कोई भी हिस्सा दिख रहा है1? नहीं! यह अमावस्या की स्थिति है|
इस स्थिति से घड़ी की विपरीत दिशा में एक पूरा चक्कर (घूर्णन) लगाइए और गौर कीजिए कि आपको क्या दिखता है|
थोड़ा सा घूमने के बाद आपको चन्द्रमा के प्रकाशित भाग का छोटा-सा हिस्सा दिखेगा| उसके आकार पर गौर कीजिए| क्या वह हंसिया या बालचंद्र जैसा दिखता है? जैसे-जैसे आप घूमते हुए शुरुआती स्थिति से 90° तक घूमेंगे, बालचंद्र बढ़ता जाएगा|
90° पर आपको प्रकाशित भाग का आधा हिस्सा दिखाई देगा| यह अर्द्धचंद्र की स्थिति है|
घूर्णन जारी रखने पर आपको आधे से ज्यादा प्रकाशित भाग दिखाई देने लगेगा| यह अर्द्धाधिक चन्द्र का आकार है और फिर से 90° घूमने पर यह बड़ा होते जाएगा|
जब चन्द्रमा सूर्य (टॉर्च) के ठीक विपरीत होगा, तब आप उसके पूरे प्रकाशित भाग को देख सकेंगे| (अगर आपका सिर टॉर्च की रोशनी को रोक रहा है तो चन्द्रमा को अपने सिर से थोड़ा ऊपर उठाएं)| यह पूर्णिमा की स्थिति है| यहां शुक्ल पक्ष पूरा हो जाता है|
घूर्णन करना जारी रखें और आपको अर्द्धाधिक चन्द्र फिर से दिखेगा| 90° तक घूमने पर यह घटते जाएगा|
यहां से फिर 90° घूमने पर आपको अर्द्धचंद्र दिखेगा, लेकिन यह कृष्ण पक्ष का अर्द्धचंद्र होगा| गौर कीजिए कि इस बार चन्द्रमा का दूसरा आधा हिस्सा दिख रहा है (शुक्ल पक्ष में बाईं ओर का आधा हिस्सा प्रकाशमान दिख रहा था और इस बार दाईं ओर का आधा हिस्सा प्रकाशमान दिख रहा है)|
घूर्णन जारी रखिए और आपको हंसिया चन्द्रमा छोटा होते हुए दिखेगा|
एक घूर्णन पूरा करने पर चन्द्रमा का प्रकाशित भाग फिर से दिखना बंद हो जाएगा| आप फिर से अमावस्या की स्थिति पर पहुंच गए हैं!
1हमने पाठ 1 में चर्चा की थी कि पृथ्वी पर वायुमंडल द्वारा बिखेरी हुई रोशनी होती है, इसलिए अंधेरे कमरे में भी आप चन्द्रमा बनी गेंद का वह हिस्सा देख सकते हैं जिसपर सीधे रोशनी नहीं पड़ रही है| मगर अंतरिक्ष में रोशनी को बिखेरने के लिए कोई वायुमंडल नहीं है, इसलिए चन्द्रमा का अंधेरा हिस्सा हमें नहीं दिखता|
अथवा
गतिविधि 1ब: चन्द्रमा की कलाएं (रोल प्ले)
नोट: यह रोल प्ले सबसे बेहतर बाहर खुले में होता है जब सूर्य क्षितिज के नजदीक हो, यानी सुबह (9 बजे के करीब) या देर शाम (4 बजे) के समय|
अगर आप इसे कमरे के अन्दर कर रहे हैं तो यह सुनिश्चित करें कि रोशनी केवल एक ओर से आ रही हो; या तो केवल एक दीवार की खिड़कियां खोलें, या एक ओर प्रकाश का कोई स्रोत रखें (जैसे प्रोजेक्टर)|
विधि:
जोड़े में खड़े हो जाइए; एक दूसरे के बीच कुछ फीट की दूरी रखें|
हर जोड़े में, बाईं ओर खड़ा बच्चा पृथ्वी बनेगा और दाईं ओर खड़ा बच्चा चन्द्रमा बनेगा|
चन्द्रमा को पृथ्वी और प्रकाश के स्रोत (सूर्य) के बीच में खड़ा होना है| क्या चन्द्रमा के चेहरे पर सीधे रोशनी पड़ रही है? नहीं! उसके सिर का पिछला भाग प्रकाशित है, पर वह पृथ्वी से नहीं दिख रहा है|
पिछले सत्र की ही तरह चन्द्रमा को घूर्णन करते हुए पृथ्वी का परिक्रमण करना है|
पृथ्वी को ध्यान से देखना है कि चन्द्रमा के चेहरे के कितने हिस्से पर रोशनी पड़ रही है| जैसे-जैसे चन्द्रमा घूर्णन करेगा, रोशनी उसके बाएं गाल पर पड़ेगी, जो बढ़ते हुए बालचंद्र को दर्शाता है|
जब चन्द्रमा ठीक एक चौथाई (90°) परिक्रमण पूरा कर ले (चन्द्रमा को रोककर पृथ्वी को उसे देखने दीजिए), तब चन्द्रमा का ठीक आधा चेहरा प्रकाशमान होगा| (गौर कीजिए कि चन्द्रमा का आधा भाग रोशनी में है, और पृथ्वी से इसका प्रकाशित भाग का केवल आधा हिस्सा ही दिखता है| बचा हुआ आधा हिस्सा (कान के पीछे का हिस्सा) पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है|)
जैसे-जैसे चन्द्रमा परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ेगा, उसके चेहरे का आधे से ज्यादा भाग प्रकाशित होता जाएगा और यह अर्द्धाधिकचंद्र या कुबड़ा चन्द्रमा दर्शाएगा| यह चन्द्रमा के अगले 90° परिक्रमण करने तक बढ़ता जाएगा|
जब चंद्रमा सूर्य के ठीक उल्टी दिशा में होगा, तब उसका पूरा चेहरा प्रकाशमान होगा (अगर पृथ्वी बना बच्चा चन्द्रमा पर पड़ने वाली रोशनी रोक रहा है तो उसे थोड़ा झुकना होगा)| यह पूर्णिमा की स्थिति है| इसके साथ ही शुक्ल पक्ष पूरा हो जाता है|
अब जैसे-जैसे चन्द्रमा परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ेगा, उसके चेहरे के जितने हिस्से पर रोशनी पड़ रही है वह घटने लगेगा, जो अर्द्धाधिकचंद्र दर्शाता है|
जब चन्द्रमा परिक्रमण का अगला चौथाई हिस्सा (90°) पूरा कर ले (यानी पूरी परिक्रमा का तीन चौथाई हिस्सा पूरा हो जाए), तब आपको चेहरे का आधा हिस्सा प्रकाशमान दिखेगा| गौर कीजिए कि इस बार चेहरे का दूसरा भाग रोशनी में है (शुक्ल पक्ष में बायां भाग प्रकाशमान था और इस बार दायां भाग प्रकाशमान है)|
चन्द्रमा को परिक्रमण के आखिरी चौथाई हिस्सा में बढ़ते हुए आपको उसका आधे से कम चेहरा प्रकाशमान होता दिखेगा, जो घटता बालचंद्र दर्शाता है|
आखिर में जब चन्द्रमा एक परिक्रमा पूरी कर लेता है तो हम अमावस्या की स्थिति में पहुंच जाते हैं जहां चेहरे पर बिल्कुल भी रोशनी नहीं पड़ती है| इसके साथ कृष्ण पक्ष पूरा हो जाता है|
आपने जो सीखा, क्या आप उसका चित्र बना सकते हैं? सन्दर्भ के लिए चित्र 2 देखिए| यह उत्तरी ध्रुव के ऊपर से पृथ्वी-चन्द्रमा प्रणाली दिखाता है| चन्द्रमा को उसकी कक्षा में आठ स्थानों पर दिखाया गया है| गौर कीजिए कि किसी भी समय चन्द्रमा का आधा भाग हमेशा रोशनी में रहता है| चन्द्रमा की कक्षा के बाहर दिखाया गया चन्द्रमा का चित्र दर्शाता है कि उस स्थान पर होने पर चन्द्रमा पृथ्वी से कैसा दिखता है|
चित्र 2: चन्द्रमा की कलाओं का स्पष्टीकरण
एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक चन्द्रमा की कलाओं का एक चक्र होता है| (आप एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा तक या किसी भी कला से दोबारा उसी कला तक भी गिन सकते हैं)| इस चक्र को पूरा करने में लगभग 29½ दिन लगते हैं, और इसीलिए कई प्राचीन कैलेंडरों में एक महीने में 30 दिन होते हैं| भारतीय पंचांग चन्द्रमा की कलाओं के चक्र के आधार पर महीने को परिभाषित करते हैं, और इसमें हर दिन (तिथि) को उस दिन की चन्द्रमा की कला के नाम से जाना जाता है| उदाहरण के तौर पर, आज (जब मैं यह पाठ लिख रही हूं) श्रावण महीने की शुक्ल चतुर्दशी (बढ़ते हुए चन्द्रमा या शुक्ल पक्ष का चौदहवां दिन) है, और कल, जब श्रावण महीने की पूर्णिमा होगी, मैं रक्षा बंधन मनाऊंगी (जिसे भारत के विभिन्न भागों में राखी पूर्णिमा, झूलन पूर्णिमा, नारली पूर्णिमा, सलोनो, जनई पूर्णिमा ओर ऋषितर्पण भी कहते हैं)| भारत के कई त्योहार चन्द्रमा की अलग-अलग कलाओं पर आते हैं| क्या आप ऐसे त्योहारों के नाम ढूंढकर लिख सकते हैं?
मालूम कीजिए कि आज कौनसी तिथि है|
क्या किसी दिन पृथ्वी पर सभी लोग चंद्रमा का एक ही रूप देख सकते हैं?
क्या दक्षिणी गोलार्ध में लोग चंद्रमा की वही कला देखते हैं, जो उत्तरी गोलार्ध वाले देखते हैं?
कल्पना करें कि आप चंद्रमा पर हैं। चंद्रमा से पृथ्वी कैसी दिखेगी? जैसी हम पाठ 2 में पहले ही चर्चा कर चुके हैं, पृथ्वी से सूर्य और चंद्रमा का दिखने वाला साइज़ लगभग समान होता है। क्या चंद्रमा से सूर्य और पृथ्वी का साइज़ समान दिखाई देगा? यदि नहीं, तो क्या पृथ्वी सूर्य से छोटी दिखाई देगी या सूर्य से बड़ी दिखाई देगी? क्या आप पृथ्वी की कलाएँ देख पाएँगे?
1.चंद्रमा से पृथ्वी कैसी दिखाई देगी जब हम पृथ्वी से पूर्णिमा का चंद्रमा देखते हैं?
2.चंद्रमा से पृथ्वी कैसी दिखाई देगी जब हम पृथ्वी से अमावस का चंद्रमा देखते हैं?
3.चंद्रमा से पृथ्वी कैसी दिखाई देगी जब हम पृथ्वी से अर्द्धचंद्र देखते हैं?
4.जब हम पृथ्वी से चंद्र ग्रहण देखते हैं, तो आपको चंद्रमा से क्या दिखेगा?
(लिखने के लिए चित्र पर क्लिक करें) चलो चर्चा करते हैं उन त्योहारों की सूची बनाएँ जो चंद्रमा की किसी एक विशेष कला पर मनाए जाते हैं। प्रत्येक विद्यार्थी कम से कम एक त्योहार का नाम बताए। (शुरू में अपने उत्तर की सीमा केवल एक नाम तक रखें, ताकि प्रत्येक को मौका मिल सके। यदि एक सप्ताह के बाद सूची अपूर्ण रहती है तो जितने नाम आप जानते हैं बताएँ, परंतु उत्तर को दोहराएँ नहीं।)
शब्दकोष
गतिविधि 1अ: चन्द्रमा की कलाएं (मॉडल)
नोट: यह प्रयोग एक अंधेरे कमरे में करें|
सामग्री: एक छोटी गोलाकार वस्तु (गेंद या नींबू), एक मजबूत लकड़ी या साइकिल स्पोक, टॉर्च/बल्ब
विधि:
गेंद को मजबूती से लकड़ी पर बांध दें| यह गेंद चन्द्रमा बनेगी|
अपनी बांह आगे कीजिए, उसे उठाकर कंधे की ऊंचाई तक लाइए और गेंद को अपने चारों ओर घुमाइए| (ध्यान रखें कि गेंद को दाहिने हाथ के नियम के अनुसार घुमाना है!) आपको चन्द्रमा का केवल एक ही चेहरा दिखाई देगा| पृथ्वी से चन्द्रमा ऐसा ही दिखता है| इसलिए आपका सिर पृथ्वी होगा|
अब अपने दोस्त को 2 मीटर दूर खड़े होने को कहिए और आपकी ओर टॉर्च चमकाने को कहिए| यह सूर्य की किरणें हैं|
अपनी बांह फिर आगे कीजिए ताकि पृथ्वी और सूर्य के बीच में चन्द्रमा आ जाए| क्या आपको चन्द्रमा के प्रकाशित भाग का कोई भी हिस्सा दिख रहा है1? नहीं! यह अमावस्या की स्थिति है|
इस स्थिति से घड़ी की विपरीत दिशा में एक पूरा चक्कर (घूर्णन) लगाइए और गौर कीजिए कि आपको क्या दिखता है|
थोड़ा सा घूमने के बाद आपको चन्द्रमा के प्रकाशित भाग का छोटा-सा हिस्सा दिखेगा| उसके आकार पर गौर कीजिए| क्या वह हंसिया या बालचंद्र जैसा दिखता है? जैसे-जैसे आप घूमते हुए शुरुआती स्थिति से 90° तक घूमेंगे, बालचंद्र बढ़ता जाएगा|
90° पर आपको प्रकाशित भाग का आधा हिस्सा दिखाई देगा| यह अर्द्धचंद्र की स्थिति है|
घूर्णन जारी रखने पर आपको आधे से ज्यादा प्रकाशित भाग दिखाई देने लगेगा| यह अर्द्धाधिक चन्द्र का आकार है और फिर से 90° घूमने पर यह बड़ा होते जाएगा|
जब चन्द्रमा सूर्य (टॉर्च) के ठीक विपरीत होगा, तब आप उसके पूरे प्रकाशित भाग को देख सकेंगे| (अगर आपका सिर टॉर्च की रोशनी को रोक रहा है तो चन्द्रमा को अपने सिर से थोड़ा ऊपर उठाएं)| यह पूर्णिमा की स्थिति है| यहां शुक्ल पक्ष पूरा हो जाता है|
घूर्णन करना जारी रखें और आपको अर्द्धाधिक चन्द्र फिर से दिखेगा| 90° तक घूमने पर यह घटते जाएगा|
यहां से फिर 90° घूमने पर आपको अर्द्धचंद्र दिखेगा, लेकिन यह कृष्ण पक्ष का अर्द्धचंद्र होगा| गौर कीजिए कि इस बार चन्द्रमा का दूसरा आधा हिस्सा दिख रहा है (शुक्ल पक्ष में बाईं ओर का आधा हिस्सा प्रकाशमान दिख रहा था और इस बार दाईं ओर का आधा हिस्सा प्रकाशमान दिख रहा है)|
घूर्णन जारी रखिए और आपको हंसिया चन्द्रमा छोटा होते हुए दिखेगा|
एक घूर्णन पूरा करने पर चन्द्रमा का प्रकाशित भाग फिर से दिखना बंद हो जाएगा| आप फिर से अमावस्या की स्थिति पर पहुंच गए हैं!
1हमने पाठ 1 में चर्चा की थी कि पृथ्वी पर वायुमंडल द्वारा बिखेरी हुई रोशनी होती है, इसलिए अंधेरे कमरे में भी आप चन्द्रमा बनी गेंद का वह हिस्सा देख सकते हैं जिसपर सीधे रोशनी नहीं पड़ रही है| मगर अंतरिक्ष में रोशनी को बिखेरने के लिए कोई वायुमंडल नहीं है, इसलिए चन्द्रमा का अंधेरा हिस्सा हमें नहीं दिखता|
अथवा
गतिविधि 1ब: चन्द्रमा की कलाएं (रोल प्ले)
नोट: यह रोल प्ले सबसे बेहतर बाहर खुले में होता है जब सूर्य क्षितिज के नजदीक हो, यानी सुबह (9 बजे के करीब) या देर शाम (4 बजे) के समय|
अगर आप इसे कमरे के अन्दर कर रहे हैं तो यह सुनिश्चित करें कि रोशनी केवल एक ओर से आ रही हो; या तो केवल एक दीवार की खिड़कियां खोलें, या एक ओर प्रकाश का कोई स्रोत रखें (जैसे प्रोजेक्टर)|
विधि:
जोड़े में खड़े हो जाइए; एक दूसरे के बीच कुछ फीट की दूरी रखें|
हर जोड़े में, बाईं ओर खड़ा बच्चा पृथ्वी बनेगा और दाईं ओर खड़ा बच्चा चन्द्रमा बनेगा|
चन्द्रमा को पृथ्वी और प्रकाश के स्रोत (सूर्य) के बीच में खड़ा होना है| क्या चन्द्रमा के चेहरे पर सीधे रोशनी पड़ रही है? नहीं! उसके सिर का पिछला भाग प्रकाशित है, पर वह पृथ्वी से नहीं दिख रहा है|
पिछले सत्र की ही तरह चन्द्रमा को घूर्णन करते हुए पृथ्वी का परिक्रमण करना है|
पृथ्वी को ध्यान से देखना है कि चन्द्रमा के चेहरे के कितने हिस्से पर रोशनी पड़ रही है| जैसे-जैसे चन्द्रमा घूर्णन करेगा, रोशनी उसके बाएं गाल पर पड़ेगी, जो बढ़ते हुए बालचंद्र को दर्शाता है|
जब चन्द्रमा ठीक एक चौथाई (90°) परिक्रमण पूरा कर ले (चन्द्रमा को रोककर पृथ्वी को उसे देखने दीजिए), तब चन्द्रमा का ठीक आधा चेहरा प्रकाशमान होगा| (गौर कीजिए कि चन्द्रमा का आधा भाग रोशनी में है, और पृथ्वी से इसका प्रकाशित भाग का केवल आधा हिस्सा ही दिखता है| बचा हुआ आधा हिस्सा (कान के पीछे का हिस्सा) पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है|)
जैसे-जैसे चन्द्रमा परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ेगा, उसके चेहरे का आधे से ज्यादा भाग प्रकाशित होता जाएगा और यह अर्द्धाधिकचंद्र या कुबड़ा चन्द्रमा दर्शाएगा| यह चन्द्रमा के अगले 90° परिक्रमण करने तक बढ़ता जाएगा|
जब चंद्रमा सूर्य के ठीक उल्टी दिशा में होगा, तब उसका पूरा चेहरा प्रकाशमान होगा (अगर पृथ्वी बना बच्चा चन्द्रमा पर पड़ने वाली रोशनी रोक रहा है तो उसे थोड़ा झुकना होगा)| यह पूर्णिमा की स्थिति है| इसके साथ ही शुक्ल पक्ष पूरा हो जाता है|
अब जैसे-जैसे चन्द्रमा परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ेगा, उसके चेहरे के जितने हिस्से पर रोशनी पड़ रही है वह घटने लगेगा, जो अर्द्धाधिकचंद्र दर्शाता है|
जब चन्द्रमा परिक्रमण का अगला चौथाई हिस्सा (90°) पूरा कर ले (यानी पूरी परिक्रमा का तीन चौथाई हिस्सा पूरा हो जाए), तब आपको चेहरे का आधा हिस्सा प्रकाशमान दिखेगा| गौर कीजिए कि इस बार चेहरे का दूसरा भाग रोशनी में है (शुक्ल पक्ष में बायां भाग प्रकाशमान था और इस बार दायां भाग प्रकाशमान है)|
चन्द्रमा को परिक्रमण के आखिरी चौथाई हिस्सा में बढ़ते हुए आपको उसका आधे से कम चेहरा प्रकाशमान होता दिखेगा, जो घटता बालचंद्र दर्शाता है|
आखिर में जब चन्द्रमा एक परिक्रमा पूरी कर लेता है तो हम अमावस्या की स्थिति में पहुंच जाते हैं जहां चेहरे पर बिल्कुल भी रोशनी नहीं पड़ती है| इसके साथ कृष्ण पक्ष पूरा हो जाता है|
आपने जो सीखा, क्या आप उसका चित्र बना सकते हैं? सन्दर्भ के लिए चित्र 2 देखिए| यह उत्तरी ध्रुव के ऊपर से पृथ्वी-चन्द्रमा प्रणाली दिखाता है| चन्द्रमा को उसकी कक्षा में आठ स्थानों पर दिखाया गया है| गौर कीजिए कि किसी भी समय चन्द्रमा का आधा भाग हमेशा रोशनी में रहता है| चन्द्रमा की कक्षा के बाहर दिखाया गया चन्द्रमा का चित्र दर्शाता है कि उस स्थान पर होने पर चन्द्रमा पृथ्वी से कैसा दिखता है|
चित्र 2: चन्द्रमा की कलाओं का स्पष्टीकरण
एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक चन्द्रमा की कलाओं का एक चक्र होता है| (आप एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा तक या किसी भी कला से दोबारा उसी कला तक भी गिन सकते हैं)| इस चक्र को पूरा करने में लगभग 29½ दिन लगते हैं, और इसीलिए कई प्राचीन कैलेंडरों में एक महीने में 30 दिन होते हैं| भारतीय पंचांग चन्द्रमा की कलाओं के चक्र के आधार पर महीने को परिभाषित करते हैं, और इसमें हर दिन (तिथि) को उस दिन की चन्द्रमा की कला के नाम से जाना जाता है| उदाहरण के तौर पर, आज (जब मैं यह पाठ लिख रही हूं) श्रावण महीने की शुक्ल चतुर्दशी (बढ़ते हुए चन्द्रमा या शुक्ल पक्ष का चौदहवां दिन) है, और कल, जब श्रावण महीने की पूर्णिमा होगी, मैं रक्षा बंधन मनाऊंगी (जिसे भारत के विभिन्न भागों में राखी पूर्णिमा, झूलन पूर्णिमा, नारली पूर्णिमा, सलोनो, जनई पूर्णिमा ओर ऋषितर्पण भी कहते हैं)| भारत के कई त्योहार चन्द्रमा की अलग-अलग कलाओं पर आते हैं| क्या आप ऐसे त्योहारों के नाम ढूंढकर लिख सकते हैं?
मालूम कीजिए कि आज कौनसी तिथि है|
क्या किसी दिन पृथ्वी पर सभी लोग चंद्रमा का एक ही रूप देख सकते हैं?
2.चंद्रमा से पृथ्वी कैसी दिखाई देगी जब हम पृथ्वी से अमावस का चंद्रमा देखते हैं?
3.चंद्रमा से पृथ्वी कैसी दिखाई देगी जब हम पृथ्वी से अर्द्धचंद्र देखते हैं?
4.जब हम पृथ्वी से चंद्र ग्रहण देखते हैं, तो आपको चंद्रमा से क्या दिखेगा?
(लिखने के लिए चित्र पर क्लिक करें)
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उन त्योहारों की सूची बनाएँ जो चंद्रमा की किसी एक विशेष कला पर मनाए जाते हैं। प्रत्येक विद्यार्थी कम से कम एक त्योहार का नाम बताए। (शुरू में अपने उत्तर की सीमा केवल एक नाम तक रखें, ताकि प्रत्येक को मौका मिल सके। यदि एक सप्ताह के बाद सूची अपूर्ण रहती है तो जितने नाम आप जानते हैं बताएँ, परंतु उत्तर को दोहराएँ नहीं।)